मैं बाल बाल बच गया हर बार इश्क़ से
मैं बाल बाल बच गया हर बार इश्क़ से
सर के बहुत क़रीब से पत्थर गुज़र गए

@umair-najmi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
54
Likes
0
मैं बाल बाल बच गया हर बार इश्क़ से
सर के बहुत क़रीब से पत्थर गुज़र गए
कोई हसीन बदन जिन की दस्तरस में नहीं
यही कहेंगे कि कुछ फ़ाएदा हवस में नहीं
किसी गली में किराए पे घर लिया उसने
फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे
नज़र में रखना कहीं कोई ग़म शनास गाहक
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है
तुझे न आएँगी मुफ़्लिस की मुश्किलात समझ
मैं छोटे लोगों के घर का बड़ा हूॅं बात समझ
मैं किस से पूछूँ ये रस्ता दुरुस्त है कि ग़लत
जहाँ से कोई गुज़रता नहीं वहाँ हूँ मैं
भेज देता हूँ मगर पहले बता दूँ तुझ को
मुझ से मिलता नहीं कोई मिरी तस्वीर के बाद
मैं चाहता था मुझसे बिछड़ कर वो ख़ुश रहे
लेकिन वो ख़ुश हुआ तो बड़ा दुख हुआ मुझे
सब इंतज़ार में थे कब कोई ज़बान खुले
फिर उसके होंठ खुले और सबके कान खुले
तुमने छोड़ा तो किसी और से टकराऊँगा मैं
कैसे मुमकिन है कि अंधे का कहीं सर न लगे
यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले
कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बा'द
शब बसर करनी है, महफ़ूज़ ठिकाना है कोई
कोई जंगल है यहाँ पास में ? सहरा है कोई ?
मैं ने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं
वो जिन्हें कातिब-ए-तक़दीर नहीं खींच सका
मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है
मेरे होंटों पे किसी लम्स की ख़्वाहिश है शदीद
ऐसा कुछ कर मुझे सिगरेट को जलाना न पड़े
किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत है
पर आँसुओं को हुरूफ़-ए-मुक़त्तिआ'त समझ
मेरा हाथ पकड़ ले पागल, जंगल है
जितना भी रौशन हो जंगल, जंगल है
मुझे पहले पहल लगता था ज़ाती मस'अला है
मैं फिर समझा मोहब्बत क़ायनाती मस'अला है
तू उसके दिल में जगह चाहता है यार जो शख़्स
किसी को देता नहीं अपने साथ वाली जगह
बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं