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GHAZAL

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो

देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग

तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक

जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं

तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें

इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो

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