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GHAZAL

कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे

कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे

आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे

जिन के दिल जोड़ते ये उम्र बिता दी मैं ने

जब मरूँगा तो ये अहबाब इकट्ठे होंगे

मुंतशिर कर के ज़मानों को खंगाला जाए

तब कहीं जा के मिरे ख़्वाब इकट्ठे होंगे

एक ही इश्क़ में दोनों का जुनूँ ज़म होगा

प्यास यकसाँ है तो सैराब इकट्ठे होंगे

मुझ को रफ़्तार चमक तुझ को घटानी होगी

वर्ना कैसे ज़र-ओ-सीमाब इकट्ठे होंगे

उस की तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं

जिस समुंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे

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कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे — Umair Najmi • ShayariPage