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GHAZAL

मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है

मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है

मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है

परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो

तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ़सियाती मसअला है

हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी

हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है

बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक़्क़ुफ़

हमारे राब्तों की बे-सबाती मसअला है

वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा

तो ये दुनिया भी कोई तजरबाती मसअला है

हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसअला था

हमारा हिज्र भी है हादसाती मसअला है

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