Shayari Page
GHAZAL

हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग

हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग

निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग

दबाओ में भी जमाअत कभी नहीं बदली

शुरूअ' दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग

जो सीखनी हो ज़बान-ए-सुकूत बिस्मिल्लाह

ख़मोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग

कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए

ख़बर से हज़्फ़-शुदा वाक़िआ'त हैं हम लोग

ये इंतिज़ार हमें देख कर बनाया गया

ज़ुहूर-ए-हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग

किसी को रास्ता दे दें किसी को पानी न दें

कहीं पे नील कहीं पर फ़ुरात हैं हम लोग

हमें जला के कोई शब गुज़ार सकता है

सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग

Comments

Loading comments…
हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग — Umair Najmi • ShayariPage