GHAZAL•
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
By Umair Najmi
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा
तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और
दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा
मुद्दत समेत जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा
यानी तअल्लुक़ात उबूरी बनाऊँगा
तुझ को ख़बर न होगी कि मैं आस-पास हूँ
इस बार हाज़िरी को हुज़ूरी बनाऊँगा
रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी
तेरी सियाह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा
जारी है अपनी ज़ात पे तहक़ीक़ आज-कल
मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा
मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका
उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा