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GHAZAL

ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे

ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे

तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे

किसी ने पास बिठाया बस आगे याद नहीं

मुझे तो दोस्त वहाँ से उठा के लाए मेरे

ये सोच कर न किए अपने दर्द उसके सुपुर्द

वो लालची है असासे न बेच खाए मेरे

इधर किधर तू नया है यहाँ कि पागल है

किसी ने क्या तुझे क़िस्से नहीं सुनाए मेरे

वो आज़माए मेरे दोस्त को ज़रूर मगर

उसे कहो कि तरीके न आज़माए मेरे

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ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे — Umair Najmi • ShayariPage