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GHAZAL

मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली

मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली

मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली

कोई रौज़न न झरोका न कोई दरवाज़ा

मेरी ता'मीर में दीवार ज़ियादा निकली

ये मिरी मौत के अस्बाब में लिखा हुआ है

ख़ून में इश्क़ की मिक़दार ज़ियादा निकली

कितनी जल्दी दिया घर वालों को फल और साया

मुझ से तो पेड़ की रफ़्तार ज़ियादा निकली

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मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली — Umair Najmi • ShayariPage