अश्क आँख में फिर अटक रहा है
अश्क आँख में फिर अटक रहा है
कंकर सा कोई खटक रहा है

@parveen-shakir
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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अश्क आँख में फिर अटक रहा है
कंकर सा कोई खटक रहा है
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
पाँव से हवाओं के बेड़ियाँ नहीं खुलतीं
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
दस्त-बस्ता शहर में खोले मिरी ज़ंजीर कौन
इक हुनर था कमाल था क्या था
मुझ में तेरा जमाल था क्या था
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
उस ने भी भूल जाने का वा'दा नहीं किया
अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ
मगर ये दिल तिरी जानिब से साफ़ भी न हुआ
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
मैं जानती थी पाल रही हूँ संपोलिए
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
पर मैं क्या करती कि ज़ंजीर तिरे नाम की थी
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए
शब वही लेकिन सितारा और है
अब सफ़र का इस्तिआ'रा और है
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
वो सितमगर भी मगर सोचे किसी पल मिलना
खुली आँखों में सपना झाँकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई