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GHAZAL

दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना

दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना

वो सितमगर भी मगर सोचे किसी पल मिलना

वाँ नहीं वक़्त तो हम भी हैं अदीम-उल-फ़ुर्सत

उस से क्या मिलिए जो हर रोज़ कहे कल मिलना

इश्क़ की रह के मुसाफ़िर का मुक़द्दर मालूम

शहर की सोच में हो और उसे जंगल मिलना

उस का मिलना है अजब तरह का मिलना जैसे

दश्त-ए-उम्मीद में अंदेशे का बादल मिलना

दामन-ए-शब को अगर चाक भी कर लीं तो कहाँ

नूर में डूबा हुआ सुब्ह का आँचल मिलना

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