अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
ज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से

@parveen-shakir
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
ज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मैं समुंदर देखती हूँ तुम किनारा देखना
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ
पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी
बहुत रोया वो हम को याद कर के
हमारी ज़िंदगी बरबाद कर के
अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी