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GHAZAL

बहुत रोया वो हम को याद कर के

बहुत रोया वो हम को याद कर के

हमारी ज़िंदगी बरबाद कर के

पलट कर फिर यहीं आ जाएँगे हम

वो देखे तो हमें आज़ाद कर के

रिहाई की कोई सूरत नहीं है

मगर हाँ मिन्नत-ए-सय्याद कर के

बदन मेरा छुआ था उस ने लेकिन

गया है रूह को आबाद कर के

हर आमिर तूल देना चाहता है

मुक़र्रर ज़ुल्म की मीआ'द कर के

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