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GHAZAL

अब भला छोड़ के घर क्या करते

अब भला छोड़ के घर क्या करते

शाम के वक़्त सफ़र क्या करते

तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं

अपने आने की ख़बर क्या करते

जब सितारे ही नहीं मिल पाए

ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते

वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था

साए फैला के शजर क्या करते

ख़ाक ही अव्वल ओ आख़िर ठहरी

कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते

राय पहले से बना ली तू ने

दिल में अब हम तिरे घर क्या करते

इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे

हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते

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