ये दुख नहीं कि अँधेरो से सुल्ह की हमने
ये दुख नहीं कि अँधेरो से सुल्ह की हमने
मलाल ये है कि अब सुब्ह की तलब भी नहीं

@parveen-shakir
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ये दुख नहीं कि अँधेरो से सुल्ह की हमने
मलाल ये है कि अब सुब्ह की तलब भी नहीं
तुझ को क्या इल्म तुझे हारने वाले कुछ लोग
किस क़दर सख़्त नदामत से तुझे देखते हैं
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
लफ़्ज़ मेरे मेरे होने की गवाही देंगे
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
चिड़ियों को बहुत प्यार था उस बूढे शजर से
उस से इक बार तो रूठूँ मैं उसी की मानिंद
और मेरी तरह से वो मुझ को मनाने आए
दुख तो ऐसा है कि दिल आँख से कट कट के बहे
एक वादा है कि रोने नहीं देता मुझ को
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
अपने लिए वो शख़्स तड़पता भी तो देखूँ
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
कोई वजूद मोहब्बत का इस्तिआ'रा हो
तेरे सिवा भी कई रंग ख़ुश नज़र थे मगर
जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे
आइने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिए
जाने अब क्या क्या दिखाएगा तुम्हारा देखना
हमने ही लौटने का इरादा नहीं किया
उसने भी भूल जाने का वादा नहीं किया
मज़ा तो तब है कि तुम हार के भी हँसते रहो
हमेशा जीत ही जाना कमाल थोड़ी है
वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया
बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता
रेल की सीटी में कैसे हिज्र की तम्हीद थी
उसको रुख़्सत करके घर लौटे तो अंदाज़ा हुआ
लड़कियाँ बैठी थीं पाँव डालकर
रौशनी सी हो गई तालाब में
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ तिरी ये उम्र तो आराम की थी
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ