अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे
अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे
अभी तो चाक मिरे ज़ख़्म के सिले भी नहीं

@parveen-shakir
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
160
Likes
0
अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे
अभी तो चाक मिरे ज़ख़्म के सिले भी नहीं
बारिशें जाड़े की और तन्हा बहुत मेरा किसान
जिस्म और इकलौता कंबल भीगता है साथ-साथ
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह
आधी रात की चुप में किस की चाप उभरती है
छत पे कौन आता है सीढ़ियाँ नहीं खुलतीं
ये कब कहती हूँ तुम मेरे गले का हार हो जाओ
वहीं से लौट जाना तुम जहाँ बेज़ार हो जाओ
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें
अपने हाथों की लकीरों से उलझ जाती हैं
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे
लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा