हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

@parveen-shakir
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
ये कब कहा था कि वो ख़ुश-बदन हमारा हो
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोचकर करते रहे
किस तरह मिरी रूह हरी कर गया आख़िर
वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
कौन होगा जो मुझे उस की तरह याद करे
शाम भी हो गई धुँदला गई आँखें भी मिरी
भूलने वाले मैं कब तक तिरा रस्ता देखूँ
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झांके कोई
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उसने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी
ज़रा सा झूठ ही कह दो मेरे बिन तुम अधूरे हो
तुम्हारा क्या बिगड़ता है ज़रा सी बात कहने में
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
हमने तो एक बात की उसने कमाल कर दिया
क़ुसूर हो तो हमारे हिसाब में लिख जाए
मोहब्बतों में जो एहसान हो तुम्हारा हो