Shayari Page
GHAZAL

अश्क आँख में फिर अटक रहा है

अश्क आँख में फिर अटक रहा है

कंकर सा कोई खटक रहा है

मैं उस के ख़याल से गुरेज़ाँ

वो मेरी सदा झटक रहा है

तहरीर उसी की है मगर दिल

ख़त पढ़ते हुए अटक रहा है

हैं फ़ोन पे किस के साथ बातें

और ज़ेहन कहाँ भटक रहा है

सदियों से सफ़र में है समुंदर

साहिल पे थकन टपक रहा है

इक चाँद सलीब-ए-शाख़-ए-गुल पर

बाली की तरह लटक रहा है

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