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GHAZAL

जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे

जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे

चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे

रास्तों का इल्म था हम को न सम्तों की ख़बर

शहर-ए-ना-मालूम की चाहत मगर करते रहे

हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को

तेरे जाने की ख़बर दीवार-ओ-दर करते रहे

वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी

इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे

आज आया है हमें भी उन उड़ानों का ख़याल

जिन को तेरे ज़ो'म में बे-बाल-ओ-पर करते रहे

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