गुलाब चाँदनी-रातों पे वार आए हम
गुलाब चाँदनी-रातों पे वार आए हम
तुम्हारे होंटों का सदक़ा उतार आए हम

@azhar-iqbal
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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गुलाब चाँदनी-रातों पे वार आए हम
तुम्हारे होंटों का सदक़ा उतार आए हम
माँग सिन्दूर भरी हाथ हिनाई करके
रूप जोबन का ज़रा और निखर आएगा
गुमान है या किसी विश्वास में है
सभी अच्छे दिनों की आस में है
ये भ्रामक प्रकाश ये कल्पित दीप उत्सव
दृष्टिहीन हुए तो ये सब पाया है
जब भी उसकी गली में भ्रमण होता है
उसके द्वार पर आत्मसमर्पण होता है
इतना संगीन पाप कौन करे
मेरे दुख पर विलाप कौन करे
गाली को प्रणाम समझना पड़ता है
मधुशाला को धाम समझना पड़ता है
हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है
जुनूँ के वास्ते सहरा ओ आशियाना क्या
फिर इस के बाद मनाया न जश्न ख़ुश्बू का
लहू में डूबी थी फ़स्ल-ए-बहार क्या करते
हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है
किसी ने हम को जगाया नहीं बहुत दिन से
है अब भी बिस्तर-ए-जाँ पर तिरे बदन की शिकन
मैं ख़ुद ही मिटने लगा हूँ उसे मिटाते हुए
न जाने ख़त्म हुई कब हमारी आज़ादी
तअल्लुक़ात की पाबंदियाँ निभाते हुए
हुआ ही क्या जो वो हमें मिला नहीं
बदन ही सिर्फ़ एक रास्ता नहीं
एक मुद्दत से हैं सफ़र में हम
घर में रह कर भी जैसे बेघर से
ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर
कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए
मैं ख़ुद से रूठ गया हूँ उसे मनाते हुए
नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बा'द
रोटियाँ भी न मयस्सर हों जिसे काम के बा'द
तुम्हारे आने की उम्मीद बर नहीं आती
मैं राख होने लगा हूँ दिए जलाते हुए
चले भी आओ भुला कर सभी गिले-शिकवे
बरसना चाहिए होली के दिन विसाल का रंग