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हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है

हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है

जुनूँ के वास्ते सहरा ओ आशियाना क्या

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हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है — Azhar Iqbal • ShayariPage