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हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है

हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है

किसी ने हम को जगाया नहीं बहुत दिन से

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हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है — Azhar Iqbal • ShayariPage