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ये भ्रामक प्रकाश ये कल्पित दीप उत्सव

ये भ्रामक प्रकाश ये कल्पित दीप उत्सव

दृष्टिहीन हुए तो ये सब पाया है

मर्यादा पुरूषोत्तम तो वनवास में है

सन्यासी के भेष में रावण आया है

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ये भ्रामक प्रकाश ये कल्पित दीप उत्सव — Azhar Iqbal • ShayariPage