है अब भी बिस्तर-ए-जाँ पर तिरे बदन की शिकन Azhar Iqbal@azhar-iqbalहै अब भी बिस्तर-ए-जाँ पर तिरे बदन की शिकन मैं ख़ुद ही मिटने लगा हूँ उसे मिटाते हुए