है अब भी बिस्तर-ए-जाँ पर तिरे बदन की शिकन

है अब भी बिस्तर-ए-जाँ पर तिरे बदन की शिकन

मैं ख़ुद ही मिटने लगा हूँ उसे मिटाते हुए