इसलिए ये महीना ही शामिल नहीं उम्र की जंत्री में हमारी
इसलिए ये महीना ही शामिल नहीं उम्र की जंत्री में हमारी
उसने इक दिन कहा था कि शादी है इस फरवरी में हमारी

@tehzeeb-hafi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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इसलिए ये महीना ही शामिल नहीं उम्र की जंत्री में हमारी
उसने इक दिन कहा था कि शादी है इस फरवरी में हमारी
रुक गया है वो या चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है
उसने शादी भी की है किसी से और गाँव में क्या चल रहा है
अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रक्खा जाता
जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रक्खा जाता
ये मैंने कब कहा कि मेरे हक़ में फ़ैसला करे
अगर वो मुझ से ख़ुश नहीं है तो मुझे जुदा करे
मेरी दुआ है और इक तरह से बद्दुआ भी है
ख़ुदा तुम्हें तुम्हारे जैसी बेटियाँ अता करे
तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले
क्या ख़बर कौन था वो, और मेरा क्या लगता था
जिससे मिलकर मुझे, हर शख़्स बुरा लगता था
मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है
कोई तुम्हारा सफ़र पर गया तो पूछेंगे
रेल देख के हम हाथ क्यों हिलाते हैं
मुझको किस दश्त से लाई थी कहां छोड़ गई
इन हवाओं से कोई पूछने वाला भी नहीं
तुमने कैसे उसके जिस्म की खुशबू से इन्कार किया
उस पर पानी फेंक के देखो कच्ची मिट्टी जैसा है
आपने मुझको डबोया है किसी और जगह
इतनी गहराई कहां होती है दरिया में
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
दिल पे आँखें रक्खें तेरी साँसें देखें
और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे
अपनी दुनिया बुरी लग गयी
पहले उसकी खुशबू मैंने खुद पर तारी की
फिर मैंने उस फूल से मिलने की तैयारी की
टूट भी जाऊँ तो तेरा क्या है
रेत से पूछ आइना क्या है
कोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होता
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता
कोई समुन्दर, कोई नदी होती, कोई दरिया होता
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता?
गुजर चुकी जुल्मते शब-ए-हिज्र, पर बदन में वो तीरगी है
मैं जल मरुंगा मगर चिरागों के लो को मध्यम नहीं करूंगा