दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे

@mirza-ghalib
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
बोसा कैसा यही ग़नीमत है
कि न समझे वो लज़्ज़त-ए-दुश्नाम
उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए
क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया
बस चुप रहो हमारे भी मुँह में ज़बान है
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'
कोई दिन और भी जिए होते
क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही
'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
तुम उन के वा'दे का ज़िक्र उन से क्यूँ करो 'ग़ालिब'
ये क्या कि तुम कहो और वो कहें कि याद नहीं
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती
पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या