क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया Mirza Ghalib@mirza-ghalibक्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया बस चुप रहो हमारे भी मुँह में ज़बान है