मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए

@mirza-ghalib
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
वगर्ना हम तो तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं
ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं
ग़ैर की बात बिगड़ जाए तो कुछ दूर नहीं
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
सद-रह आहंग-ए-ज़मीं बोस-ए-क़दम है हम को
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
हूरान-ए-ख़ुल्द में तिरी सूरत मगर मिले
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामा-बर को देखते हैं
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए
बैठा रहा अगरचे इशारे हुआ किए
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे
वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो
कीजे हमारे साथ अदावत ही क्यूँ न हो
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़ ओ माह-ओ-साल कहाँ
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़
वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
राज़-ए-मक्तूब ब-बे-रब्ती-ए-उनवाँ समझा
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का
याँ जादा भी फ़तीला है लाले के दाग़ का
तू दोस्त कसू का भी सितमगर न हुआ था
औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है