ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ

@mirza-ghalib
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की
इतराए क्यूँ न ख़ाक सर-ए-रहगुज़ार की
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
अक़्ल कहती है कि वो बे-मेहर किस का आश्ना
रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
फिर इक रोज़ मरना है हज़रत-सलामत
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
इस साल के हिसाब को बर्क़ आफ़्ताब है
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रयाद आया
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना जुया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कि हुए मेहर-ओ-मह तमाशाई
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
दे बत-ए-मय को दिल-ओ-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
ब-खूँ-ग़ल्तीदा-ए-सद-रंग दा'वा पारसाई का
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमअ'
हुई है आतिश-ए-गुल आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-शमअ'
पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द
ख़ार-ए-पा हैं जौहर-ए-आईना-ए-ज़ानू मुझे
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हबाब-ए-मौजा-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-क़दम मेरा
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में
काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अज़ाब में