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GHAZAL

रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

दिल-लगी की आरज़ू बेचैन रखती है हमें

वर्ना याँ बे-रौनक़ी सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

नश्शा-ए-मय बे-चमन दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

जाम दाग़-ए-अंदूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

दाग़-ए-रब्त-ए-हम हैं अहल-ए-बाग़ गर गुल हो शहीद

लाला चश्म-ए-हसरत-आलूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

शोर है किस बज़्म की अर्ज़-ए-जराहत-ख़ाना का

सुब्ह यक-बज़्म-ए-नमक सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

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रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है — Mirza Ghalib • ShayariPage