अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
कि अपने साए से सर पाँव से है दो क़दम आगे

@mirza-ghalib
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
कि अपने साए से सर पाँव से है दो क़दम आगे
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
दावा-ए-जमियत-ए-अहबाब जा-ए-ख़ंदा है
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
ग़ुलाम-ए-साक़ी-ए-कौसर हूँ मुझ को ग़म क्या है
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक