दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
या'नी हमारे जेब में इक तार भी नहीं

@mirza-ghalib
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
या'नी हमारे जेब में इक तार भी नहीं
दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया
आतिश-ए-ख़ामोश की मानिंद गोया जल गया
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ा-मंद कर गई
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
हुआ रक़ीब तो हो नामा-बर है क्या कहिए
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
नाला पाबंद-ए-नय नहीं है
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
ख़ुश हूँ कि मेरी बात समझनी मुहाल है
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
या'नी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना
बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ
बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआ'र का दफ़्तर खुला
रखियो या रब ये दर-ए-गंजीना-ए-गौहर खुला
बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
जितने ज़ियादा हो गए उतने ही कम हुए
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
सो रहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
सुब्ह के मानिंद ज़ख़्म-ए-दिल गरेबानी करे
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिए