एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था


अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू

तोड़ा जो तू ने आइना तिमसाल-दार था


गलियों में मेरी ना'श को खींचे फिरो कि मैं

जाँ-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था


मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल

हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आब-दार था


कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब

देखा तो कम हुए प ग़म-ए-रोज़गार था


किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था

आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर-ग़ुबार था


किस का ख़याल आइना-ए-इन्तिज़ार था

हर बर्ग-ए-गुल के पर्दे में दिल बे-क़रार था


जूँ ग़ुंचा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र न पूछ

पैकाँ से तेरे जल्वा-ए-ज़ख़्म आश्कार था


देखी वफ़ा-ए-फ़ुर्सत-ए-रंज-ओ-नशात-ए-दहर

ख़म्याज़ा यक-दराज़ी-ए-उम्र-ए-ख़ुमार था


सुब्ह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुर्ग थी 'असद'

जिस दश्त में वो शोख़-ए-दो-आलम शिकार था