तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह
तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह
आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं

@jaun-elia
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह
आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं
ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे
एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
अपनी महरूमियाँ छिपाते हैं
हम गरीबों की आन बान में क्या
आप अपने से हम-सुख़न रहना
हमनशीं साँस फूल जाती है
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
ज़ुज़ हरीफ़ान-ए-सितम किस को पुकारा जाए
यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर हो
जो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा
ज़ात दर ज़ात हमसफ़र रहकर
अजनबी अजनबी को भूल गया
फ़िक्र-ए-ईजाद में गुम हूँ मुझे ग़ाफ़िल न समझ
अपने अंदाज़ पर ईजाद करूँगा तुझ को
इक महक सिम्त ए दिल से आई थी
मैं ये समझा तेरी सवारी है
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी हैं मुरव्वत में!
मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालतें
तुमने साँचे में जुनूँ के ढाल दी
ये तेरे ख़त ये तेरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
मता-ए-जाँ हैं तेरे कौल और क़सम की तरह
उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते इक क़बा़ भी सी गई
चाँद ने ओढ़ ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं
तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं
कल दोपहर अजीब इक बेदिली रही
बस तिल्लियाँ जलाकर बुझाता रहा हूँ मैं
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुमसे मिलकर बहुत खुशी हो क्या
ये धोखे देता आया है दिल को भी दुनिया को भी
इसके छल ने खार किया है सहरा में लैला को भी
हुस्न बला का कातिल हो पर आखिर को बेचारा है
इश्क़ तो वो कातिल जिसने अपनों को भी मारा है