इक हुस्न-ए-बेमिसाल की तम्सील के लिए
इक हुस्न-ए-बेमिसाल की तम्सील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं

@jaun-elia
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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इक हुस्न-ए-बेमिसाल की तम्सील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं
ज़ुलेख़ा-ए-अज़ीज़ाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम
मैं तो सफों के दरमियां कब से पड़ा हूं नीम जाँ,
मेरे तमाम जाँ निसार मेरे लिए तो मर गए
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
हाल ये है कि अपनी हालत पर
गौर करने से बच रहा हूँ मैं
हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी
सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम
नहीं देखी है शकल तक उसकी
ख़्वाब में किसकी शकल देखूँ मैं
हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम
दिल में और दुनिया में अब नहीं मिलेंगे हम
वक़्त के हमेशा में अब नहीं मिलेंगे हम
तुमने एहसान किया था जो हमें चाहा था
अब वो एहसान जता दो तो मजा आ जाए
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच ये तूने कैसी शक्ल बनाई है
रोया हूँ तो अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने
शौक़ है इस दिल-ए-दरिंदा को
आप के होंठ काट खाने का
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या
जानिए उस से निभेगी किस तरह
वो ख़ुदा है मैं तो बंदा भी नहीं
ज़िंदगी क्या है इक कहानी है
ये कहानी नहीं सुनानी है
मैं जो हूँ 'जौन-एलिया' हूँ जनाब
इस का बेहद लिहाज़ कीजिएगा
अपने सर इक बला तो लेनी थी
मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है