"दरीचा-हा-ए-ख़याल"
"दरीचा-हा-ए-ख़याल"
चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हें

@jaun-elia
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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"दरीचा-हा-ए-ख़याल"
चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हें
"दरख़्त-ए-ज़र्द"
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
"अजनबी शाम"
धुँद छाई हुई है झीलों पर
"नाकारा"
कौन आया है
"वो"
वो किताब-ए-हुस्न वो इल्म ओ अदब की तालीबा
"सफ़र के वक़्त"
तुम्हारी याद मिरे दिल का दाग़ है लेकिन
"मगर ये ज़ख़्म ये मरहम"
तुम्हारे नाम तुम्हारे निशाँ से बे-सरोकार
"फ़न पारा"
ये किताबों की सफ़-ब-सफ़ जिल्दें
"हमेशा क़त्ल हो जाता हूँ मैं"
बिसात-ए-ज़िंदगी तो हर घड़ी बिछती है उठती है
"बस एक अंदाज़ा"
बरस गुज़रे तुम्हें सोए हुए
"ख़ल्वत"
मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को
"रातें सच्ची हैं दिन झूटे हैं"
चाहे तुम मेरी बीनाई खुरच डालो फिर भी अपने ख़्वाब नहीं छोड़ूँगा
"क़ातिल"
सुना है तुम ने अपने आख़िरी लम्हों में समझा था
"सज़ा"
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम
"रम्ज़"
तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
"शायद"
मैं शायद तुमको यकसर भूलने वाला हूँ