Shayari Page
NAZM

"अजनबी शाम"

"अजनबी शाम"

धुँद छाई हुई है झीलों पर

उड़ रहे हैं परिंद टीलों पर

सब का रुख़ है नशेमनों की तरफ़

बस्तियों की तरफ़ बनों की तरफ़

अपने गल्लों को ले के चरवाहे

सरहदी बस्तियों में जा पहुँचे

दिल-ए-नाकाम मैं कहाँ जाऊँ

अजनबी शाम मैं कहाँ जाऊँ

Comments

Loading comments…
"अजनबी शाम" — Jaun Elia • ShayariPage