शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए
शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए
क्या मेरी फ़स्ल हो चुकी क्या मेरे दिन गुज़र गए

@jaun-elia
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए
क्या मेरी फ़स्ल हो चुकी क्या मेरे दिन गुज़र गए
आदमी वक़्त पर गया होगा
वक़्त पहले गुज़र गया होगा
ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं
कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब-नाक सूरत है
बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे
हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर
उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर
तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में
हालत न पूछियो तू हालत नहीं है मुझ में
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं
तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं
ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया
मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
जान हम को वहाँ बुला भेजो
शर्मिंदगी है हम को बहुत हम मिले तुम्हें
तुम सर-ब-सर ख़ुशी थे मगर ग़म मिले तुम्हें
किसी लिबास की खुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है
तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई
कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँ
लिए हैं साँस और बाहर रहा हूँ
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या
सर ही अब फोड़िए नदामत में
नींद आने लगी है फ़ुर्क़त में
किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे
आप मिलते नहीं हैं क्या कीजे