तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में

तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में

हालत न पूछियो तू हालत नहीं है मुझ में


अब तो नज़र में आ जा बाँहों के घर में आ जा

ऐ जान तेरी कोई सूरत नहीं है मुझ में


ऐ रंग रंग में आ आग़ोश-ए-तंग में आ

बातें ही रंग की हैं रंगत नहीं है मुझ में


अपने में ही किसी की हो रू-ब-रूई मुझ को

हूँ ख़ुद से रू-ब-रू हूँ हिम्मत नहीं है मुझ में


अब तो सिमट के आ जा और रूह में समा जा

वैसे किसी की प्यारे वुसअ'त नहीं है मुझ में


शीशे के इस तरफ़ से मैं सब को तक रहा हूँ

मरने की भी किसी को फ़ुर्सत नहीं है मुझ में


तुम मुझ को अपने रम में ले जाओ साथ अपने

अपने से ऐ ग़ज़ालो वहशत नहीं है मुझ में