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GHAZAL

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू

और इतने ही बेमुरव्वत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ

तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो

किसलिए देखते हो आईना

तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है

तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

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