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SHER

न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं

न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं

तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं

तुझे क्या ख़बर मह-ओ-साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ

तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं

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