न हुआ नसीब क़रार ए जाँ हवस ए क़रार भी अब नहीं

न हुआ नसीब क़रार ए जाँ हवस ए क़रार भी अब नहीं

तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं

तुझे क्या ख़बर मह ओ साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ

तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं