तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए

@faiz-ahmad-faiz
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
जानता है कि वो न आएँगे
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
इक बाग़ नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेगे
अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
मगर गुज़ारनेवालों के दिन गुज़रते हैं
तेरे फ़िराक़ में यूँ सुबह-ओ-शाम करते हैं
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है,
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
क़फस उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
तूने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंठ
ज़िंदगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बाद आए जो अज़ाब आए
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें
दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें