यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़

यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़

न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई

यूँ ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल

न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई