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लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे

अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे

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लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे — Faiz Ahmad Faiz • ShayariPage