"याद"
"याद"
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं

@faiz-ahmad-faiz
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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"याद"
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
"अंजाम"
हैं लबरेज़ आहों से ठंडी हवाएँ
वो जिस की दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिस की तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ
1
दूर जा कर क़रीब हो जितने
दर्द थम जाएगा ग़म न कर, ग़म न कर
यार लौट आएँगे, दिल ठहर जाएगा, ग़म न कर, ग़म न कर
गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ तुम नहीं आतीं
रियाज़-ए-ज़ीस्त है आज़ुरदा-ए-बहार अभी
जब दुख की नदिया में हम ने
जीवन की नाव डाली थी
आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है
आँख से दूर तिलिस्मात के दर वा हैं कई
अब क्यूँ उस दिन का ज़िक्र करो
जब दिल टुकड़े हो जाएगा
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात
चलो फिर से मुस्कुराएँ
चलो फिर से दिल जलाएँ
मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
वो आशिक़ी की ज़बाँ में कहीं भी दर्ज नहीं
आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़
दुख से भरपूर दिन तमाम हुए
बहार आई तो जैसे यक-बार
लौट आए हैं फिर अदम से
मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं मगर आरज़ू है कि जब क़ज़ा
मुझे बज़्म-ए-दहर से ले चले
तुम न आए थे तो हर इक चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से
ज़ीना ज़ीना उतर रही है रात
इक ज़रा सोचने दो
इस ख़याबाँ में
सच है हमीं को आप के शिकवे बजा न थे
बे-शक सितम जनाब के सब दोस्ताना थे
ये धूप किनारा शाम ढले
मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ