Shayari Page
NAZM

ये धूप किनारा शाम ढले

ये धूप किनारा शाम ढले

मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ

जो रात न दिन जो आज न कल

पल-भर को अमर पल भर में धुआँ

इस धूप किनारे पल-दो-पल

होंटों की लपक

बाँहों की छनक

ये मेल हमारा झूट न सच

क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो

किस कारन झूटी बात करो

जब तेरी समुंदर आँखों में

इस शाम का सूरज डूबेगा

सुख सोएँगे घर दर वाले

और राही अपनी रह लेगा

Comments

Loading comments…