है एक लाश की सूरत पड़ी हुई दुनिया
है एक लाश की सूरत पड़ी हुई दुनिया
सलीब-ए-वक़्त के ऊपर जड़ी हुई दुनिया

@ameer-imam
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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है एक लाश की सूरत पड़ी हुई दुनिया
सलीब-ए-वक़्त के ऊपर जड़ी हुई दुनिया
गुज़रे हुए वक़्तों का निशाँ था तो कहाँ था
हम से जो निहाँ है वो अयाँ था तो कहाँ था
पढ़ लेगा कोई रात की रोई हुई आँखें
हर सम्त हैं आराम से सोई हुई आँखें
धूप के शहर में हुए साए
शुक्र किसका करूँ कि आप आए
दर्द-ए-दिल है न फ़लसफ़ा मेरे पास
दाल रोटी का मसअला मेरे पास
मेरे अशआर सुनाना न सुनाने देना
जब मैं दुनिया से चला जाऊँ तो जाने देना
ज़मीं के सारे मनाज़िर से कट के सोता हूँ
मैं आसमाँ के सफ़र से पलट के सोता हूँ
कि जैसे कोई मुसाफ़िर वतन में लौट आए
हुई जो शाम तो फिर से थकन में लौट आए
वक़्त की इंतिहा तलक वक़्त की जस्त 'अमीर-इमाम'
हस्त की बूद 'अमीर-इमाम' बूद की हस्त 'अमीर-इमाम'
वो अपने बंद-ए-क़बा खोलती तो क्या लगती
ख़ुदा के वास्ते कोई कहे ख़ुदा-लगती
हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा
वो देखो दूर कहीं आसमाँ पिघलने लगा
वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका
मैं थक के मुस्कुरा दिया जब रो नहीं सका
रूदाद-ए-जाँ कहें जो ज़रा दम मिले हमें
उस दिल के रास्ते में कई ख़म मिले हमें
है कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम
नहर-ए-रवाँ को प्यास का मंज़र लिखेंगे हम
काँधों से ज़िंदगी को उतरने नहीं दिया
उस मौत ने कभी मुझे मरने नहीं दिया
आग के साथ मैं बहता हुआ पानी सुनना
रात-भर अपने अनासिर की सुनानी सुनना
हर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ है
होती है जो भी जुरअत-ए-निगाह इश्क़ है
छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
कोई इन आँखों में सारी रात टहलता है
उन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए
आँखों को टूटे ख़्वाब का हर्जाना चाहिए
यूँ मिरे होने को मुझ पर आश्कार उस ने किया
मुझ में पोशीदा किसी दरिया को पार उस ने किया