छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
कोई इन आँखों में सारी रात टहलता है

@ameer-imam
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
कोई इन आँखों में सारी रात टहलता है
आग के साथ मैं बहता हुआ पानी सुनना
रात-भर अपने अनासिर की सुनानी सुनना
रूदाद-ए-जाँ कहें जो ज़रा दम मिले हमें
उस दिल के रास्ते में कई ख़म मिले हमें
ज़मीं के सारे मनाज़िर से कट के सोता हूँ
मैं आसमाँ के सफ़र से पलट के सोता हूँ
काँधों से ज़िंदगी को उतरने नहीं दिया
उस मौत ने कभी मुझे मरने नहीं दिया
कि जैसे कोई मुसाफ़िर वतन में लौट आए
हुई जो शाम तो फिर से थकन में लौट आए
है कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम
नहर-ए-रवाँ को प्यास का मंज़र लिखेंगे हम
हर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ है
होती है जो भी जुरअत-ए-निगाह इश्क़ है
वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका
मैं थक के मुस्कुरा दिया जब रो नहीं सका
वक़्त की इंतिहा तलक वक़्त की जस्त 'अमीर-इमाम'
हस्त की बूद 'अमीर-इमाम' बूद की हस्त 'अमीर-इमाम'
कभी तो बनते हुए और कभी बिगड़ते हुए
ये किस के अक्स हैं तन्हाइयों में पड़ते हुए
उन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए
आँखों को टूटे ख़्वाब का हर्जाना चाहिए
इन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए
आँखों को टूटे ख़्वाब का हर्जाना चाहिए
जो अब जहान-ए-बरहना का इस्तिआरा हुआ
मैं ज़िंदगी तिरा इक पैरहन उतारा हुआ
मद्धम हुई तो और निखरती चली गई
ज़िंदा है एक याद जो मरती चली गई
ये कार-ए-ज़िंदगी था तो करना पड़ा मुझे
ख़ुद को समेटने में बिखरना पड़ा मुझे
बन के साया ही सही सात तो होती होगी
कम से कम तुझ में तिरी ज़ात तो होती होगी
चलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी
रात होती जाएगी सुनसान होती जाएगी
रास्ता चलते हुए दो हम-क़दम ग़ुस्से में है
हमसे दुनिया और इस दुनिया से हम ग़ुस्से में है