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GHAZAL

उन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए

उन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए

आँखों को टूटे ख़्वाब का हर्जाना चाहिए

वो काम रह के करना पड़ा शहर में हमें

मजनूँ को जिस के वास्ते वीराना चाहिए

इस ज़ख़्म-ए-दिल पे आज भी सुर्ख़ी को देख कर

इतरा रहे हैं हम हमें इतराना चाहिए

तन्हाइयों पे अपनी नज़र कर ज़रा कभी

ऐ बेवक़ूफ़ दिल तुझे घबराना चाहिए

है हिज्र तो कबाब न खाने से क्या उसूल

गर इश्क़ है तो क्या हमें मर जाना चाहिए

दानाइयाँ भी ख़ूब हैं लेकिन अगर मिले

धोखा हसीन सा तो उसे खाना चाहिए

बीते दिनों की कोई निशानी तो साथ हो

जान-ए-हया तुम्हें ज़रा शर्माना चाहिए

इस शाइ'री में कुछ नहीं नक़्क़ाद के लिए

दिलदार चाहिए कोई दीवाना चाहिए

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