वो एक अश्क जो हासिल है ज़िंदगानी का
वो एक अश्क जो हासिल है ज़िंदगानी का
तमाम 'उम्र के मंज़र निचोड़ कर निकला

@ameer-imam
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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वो एक अश्क जो हासिल है ज़िंदगानी का
तमाम 'उम्र के मंज़र निचोड़ कर निकला
असर करती है कोई-कोई बात आहिस्ता आहिस्ता
समझ में आते हैं कुछ मोजज़ात आहिस्ता आहिस्ता
ख़ुद हुस्न से न पूछिए तारीफ़ हुस्न की
दीवाने से ये पूछिए दीवाना क्यूँ हुआ
ख़ाक को ख़ाक से मिलने नहीं देती दुनिया
मर भी जाएँ तो कफ़न बीच में आ जाता है
बे-सबब मरने से अच्छा है कि हो कोई सबब
दोस्तों सिगरेट पियो मय-ख़्वारियाँ करते रहो
हम से यहाँ तो कुछ भी समेटा न जा सका
हम से हर एक चीज़ बिखरती चली गई
मत बताना कि बिखर जाएँ तो क्या होता है
नईं नस्लों को नए ख़्वाब सजाने देना
लुत्फ़ आता है बहुत सोच के मुझको कि रक़ीब
रंगत-ए-लब को तेरी पान समझते होंगे
अमीर इमाम के अशआर अपनी पलकों पर
तमाम हिज्र के मारे उठाए फिरते हैं
इक और किताब ख़त्म की फिर उस को फाड़ कर
काग़ज़ का इक जहाज़ बनाया ख़ुशी हुई
हसीन लड़कियाँ ख़ुश्बूएँ चाँदनी रातें
और इनके बाद भी ऐसी सड़ी हुई दुनिया
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तिरे शहर में बरसात तो होती होगी
सिगरेट की शक्ल में कभी चाय की शक्ल में
इक प्यास है कि जिसको पिये जा रहे हैं हम
आँधियों से लड़ रहे हैं जंग कुछ काग़ज़ के लोग
हम पे लाज़िम है कि इन लोगों को फ़ौलादी कहें
तूने जिस बात को इज़हार-ए-मुहब्बत समझा
बात करने को बस इक बात रखी थी हमने
अब सुलगती है हथेली तो ख़याल आता है
वो बदन सिर्फ़ निहारा भी तो जा सकता था
मुस्कुरा बैठे हैं तुझको मुस्कुराता देख कर
वरना तेरी मुस्कराहट की क़सम ग़ुस्से में हैं
पूछ मुझसे कि तेरे होंठ पे तिल है क्यूँ कर
ऐसा नुक़्ता कहीं नादान समझते होंगे
जान लेना कि नया हाथ बुलाता है तुम्हें
गर कोई हाथ छुड़ाए तो छुड़ाने देना
कर ही क्या सकती है दुनिया और तुझ को देख कर
देखती जाएगी और हैरान होती जाएगी