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GHAZAL

वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका

वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका

मैं थक के मुस्कुरा दिया जब रो नहीं सका

इस बार ये हुआ तिरी यादों की भीड़ में

हर गाम ख़ुद को मिल गया मैं खो नहीं सका

जागा हूँ गहरी नींद से लेकिन अजीब बात

ये लग रहा है जैसे कि मैं सो नहीं सका

उग आई घास इश्क़ के मलबे पे हर तरफ़

हम दोनों में से कोई उसे धो नहीं सका

जादू-नगर है कोई मिरा अंदरूँ जहाँ

होता रहा है वो जो कभी हो नहीं सका

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वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका — Ameer Imam • ShayariPage